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Puri or Bhubaneshwar ke best tourist places | पुरी और भुवनेश्वर के पास पर्यटन स्थल

Puri or Bhubaneshwar ke best tourist places | पुरी और भुवनेश्वर के पास पर्यटन स्थल  हेलो दोस्तों इस पोस्ट में हम बात करेंगे की Puri or Bhubaneshwar ke best tourist places के बारे में और में आपको बताऊंगा की हमें पुरी और भुबनेश्वर में कब और कहाँ घूमने जाएँ । और इस ब्लॉग पोस्ट में आपको मिलेगी  पुरी और भुवनेश्वर के पास पर्यटन स्थल  की कम्पलीट डिटेल।   भुबनेश्वर में अचानक से लिया गया एक फोटो  वैसे तो ओडिशा का इतिहास हजारों साल पुराणा है पर हम कुछ पॉइंटों पर बात करेंगे। 18 वीं और 19 वीं सदी में जब ओडिशा और बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे और 1912 में बिहार और ओडिशा बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग हुए और बिहार प्रेसीडेंसी का निर्माण हुआ। और फिर 1अप्रैल 1936 को कटक के कनिका पैलेस में जब बिहार प्रेसीडेन्सी में से भाषा के आधार पर एक प्रान्त अलग हुआ। उस हिस्से की लगभग 93% आबादी की ओरिया भाषा होने के कारण उसको नाम मिला ओरिस्सा जो की अब ओडिशा के रूप में जाना जाता है। ओडिसा की विकास दर काफी ख़राब है इसके सामान्यतः मुझे दो कारण नज़र आते हैं:-  1.यहाँ की जनसँख्या का ज्यादातर भाग जंगलों में रहने वाली

Puri or Bhubaneshwar ke best tourist places | पुरी और भुवनेश्वर के पास पर्यटन स्थल

Puri or Bhubaneshwar ke best tourist places | पुरी और भुवनेश्वर के पास पर्यटन स्थल 

हेलो दोस्तों इस पोस्ट में हम बात करेंगे की Puri or Bhubaneshwar ke best tourist places के बारे में और में आपको बताऊंगा की हमें पुरी और भुबनेश्वर में कब और कहाँ घूमने जाएँ। और इस ब्लॉग पोस्ट में आपको मिलेगी पुरी और भुवनेश्वर के पास पर्यटन स्थल की कम्पलीट डिटेल। 


भुबनेश्वर में अचानक से लिया गया एक फोटो 

वैसे तो ओडिशा का इतिहास हजारों साल पुराणा है पर हम कुछ पॉइंटों पर बात करेंगे। 18 वीं और 19 वीं सदी में जब ओडिशा और बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे और 1912 में बिहार और ओडिशा बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग हुए और बिहार प्रेसीडेंसी का निर्माण हुआ।

और फिर 1अप्रैल 1936 को कटक के कनिका पैलेस में जब बिहार प्रेसीडेन्सी में से भाषा के आधार पर एक प्रान्त अलग हुआ। उस हिस्से की लगभग 93% आबादी की ओरिया भाषा होने के कारण उसको नाम मिला ओरिस्सा जो की अब ओडिशा के रूप में जाना जाता है।

ओडिसा की विकास दर काफी ख़राब है इसके सामान्यतः मुझे दो कारण नज़र आते हैं:- 

1.यहाँ की जनसँख्या का ज्यादातर भाग जंगलों में रहने वाली जनजाति है जहाँ तक शिक्षा को पहुँचाने में बहुत समय लग गया। इसी कारण इन जनजातियों को बड़े शहरों से जुड़ने में बहुत समय लग गया।

2. ओडिशा एक ऐसा राज्य है जिसे प्रकृति ने बार बार गिराया या कह लो की बार बार तोड़ दिया तहस नहस कर दिया परन्तु यहाँ के लोगों ने यहाँ की सरकार ने कभी हार नहीं मानी। और ओडिशा बार बार खड़ा होता रहा क्यूंकि ये भारत का ऐसा राज्य है जहाँ पर सबसे ज्यादा समुद्री तूफ़ान या साइक्लोन आते हैं।

1 अक्टूबर 1999 से पहले भी ज़िंदगी सामान्य ही चल रही थी किसी को भी ये अंदाज़ा नहीं था की अगले कुछ दिनों में हमारे साथ क्या होने वाला है क्यूंकि सभी को तो यही लग रहा था की जैसे पहले साइक्लोन आये थे ऐसा ही कुछ हो सकता है।

https://youtu.be/NVueFIQmqC0
ब्लू फ्लैग बीच पुरी ओडिशा 

लेकिन किसी को नहीं पता था की ये कितना भयानक होने वाला था क्यूंकि उत्तरी हिन्द महासागर का सबसे शक्तिशाली तूफ़ान 5B ओडिशा से टकराने वाला था। हजारों परिवारों को अपना घर तटीय मैदानों से छोड़कर जाना पड़ा।

लगभग 275000 घर बर्बाद हो गए और करीब 17000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र की फसल बर्बाद हो गयी। और सबसे दुखदायी लगभग 15000 लोगों ने अपनी जान गँवाई और करीब 250000 घरेलु जानवर या कहें पालतू मवेशी मारे गए जिनमे ४ लाख से ज्यादा गायें थीं।

इस त्रासदी के बाद सभी को ये यकीन हो गया की ओडिशा अब कभी संभल नहीं पायेगा। लेकिन कहते हैं न की हिम्मत ए मर्दा तो मदद ए खुदा मतलब जो हिम्मत नहीं हारता भगवन भी उसका साथ देता है और ओडिशा ने दिखा दिया की हम हिम्मत नहीं हारेंगे।

और आज ओडिशा में सबकुछ सामान्य है ऐसा लगता ही नहीं की इस राज्य ने इतनी त्रासदी भी झेली है। अगर मेरी नज़र से देखो तो आपको ये जानकर आश्चर्य होगा की ओडिशा एक नारी प्रधान राज्य है जो मुझे बहुत अच्छा लगा क्यूंकि यहाँ पर हर कार्य में औरत को आगे रखते हैं या ये कहें की यहाँ पर हर घर में औरत का फैसला अंतिम होता है।

ये सब किसी किताब में लिखा नहीं है ये सब मैंने खुद देखा है क्यूंकि मुझे यहाँ पर ओडिशा के लोगों के बीच १ साल हो चूका है और जो मैंने अभी तक देखा है या महसूस किया है में वही लिख रहा हूँ।  यहाँ पर माँ के रिलेशन को ज्यादा महत्व देते हैं जैसे मौसी।

आपको शायद पता हो या न हो भगवन जगन्नाथ की पुरी में जो रथ यात्रा  होती है वो क्या है ये आप आगे पढोगे तो आपको पता चल जायेगा। यहाँ की दूसरी सबसे अच्छी बात यहाँ का ट्रांसपोर्टेशन है मैंने सारा भारत घूमा है लेकिन मुझे यहाँ के जैसा ट्रांसपोर्टेशन कहीं भी नहीं मिला।

यहाँ पर हर 10 या 15 मिनट्स में गोवेर्मेंट की बसें हैं जो शहर के अंदर और एक शहर से दूसरे शहर जाने का सबसे सस्ता और अच्छा साधन है। इसकी एक मोबाइल ऐप भी है जिसका नाम MO BUS है जिसमे आप बस का नजदीकी स्टॉप और टाइमटेबल भी देख सकते हो।   

अब चलते हैं मैन पॉइंट की तरफ ओडिशा में बहुत से ऐसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन हैं जिनको ज्यादा जानते नहीं हैं या कह सकते हो की ज्यादा पॉपुलर नहीं हैं। अगर आप ओडिशा आते हैं तो आपको कहाँ घूमना चाहिए ये में आपको बता देता हूँ।

में आपको पूरे टूर की प्लानिंग बताऊंगा की कैसे आप अपने ट्रिप को सस्ते में कम समय में और अच्छे तरीके से पूरा कर सकते हो तो चलिए बनाते हैं लिस्ट और में वही लिस्ट बनाऊंगा जहाँ में घूम चूका हूँ बाकी जैसे जैसे मेरी ट्रिप आगे बढ़ेगी ब्लॉग भी अपडेट होता रहेगा।  

लिंगराज मंदिर भुबनेश्वर 

खण्डागिरि और उदयगिरि की गुफाएं 

भुबनेश्वर 

परिचय

भुबनेश्वर ओडिशा की राजधानी है परन्तु 19 अगस्त 1948 से पहले भुबनेश्वर ओडिशा की राजधानी नहीं था तब कटक ओडिशा की राजधानी था लेकिन 19 अअगस्त 1948 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने भुबनेश्वर को ओडिशा की राजधानी घोसित किया था।   

https://youtu.be/6TV9S1Op7xY
भुबनेश्वर में मेरे होटल से बहार का नज़ारा 

भुबनेश्वर को मंदिरों का शहर भी कहते हैं और इसका पर्यटन के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है तो हम भुबनेश्वर और उसके आस पास के पर्यटन क्षत्रों के बारे में बात कर लेते हैं। 

1. लिंगराज मंदिर भुबनेश्वर 

परिचय

कहा जाता है की लिंगराज मंदिर में एक ही जगह और एक ही साथ भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु निवास करते हैं। भगवान शिव की पत्नी को यहाँ भुबनेश्वरी कहा जाता है और कहा जाता है की उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम भुबनेश्वर पड़ा है।

पहले यहाँ पर कीर्तिवास के रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती थी फिर बाद में भगवान शिव की पूजा हरिहर के रूप में की जाने लगी जो अभी तक जारी है। आज भी लिंगराज मंदिर को भुबनेश्वर शहर की खास पहचान के रूप में जाना जाता है।

लिंगराज मंदिर का मुख्य दरवाजा 


लिंगराज  मंदिर का इतिहास 

लिंगराज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में उस समय के राजा ययाति केसरी ने करवाया था परन्तु जो अभी का मंदिर है उसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। परन्तु इसके अध्ययन में ये भी पता चला है की इसके कुछ हिस्से 14वीं शताब्दी में भी बनाये गए थे। 

लिंगराज मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है इसे भी श्री जगन्नाथ मंदिर की तरह बनाया गया है जिसमे बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया है जिन पर शानदार नक्काशी की गयी है। इस मंदिर की छोटी पर उलटी घंटी और क्लश बना है जो आज तक भी एक रहस्य है की इसका अर्थ क्या है और इसे ऐसा क्यों बनाया गया है। 

लिंगराज मंदिर की खास बातें :-

1. मंदिर के पास एक सरोवर है जिसे बिंदुसागर के नाम से जाना जाता है कहा जाता है की जब माता पार्वती ने लिट्टी और वसा का वध किया था तो उसके बाद माता पार्वती को प्यास लगी तो भगवन शिव ने सभी तीर्थों के जल को प्रकट होने का आह्वान किया था। 

2. कहते हैं की लिंगराज मंदिर में भगवन शिव और भगवन विष्णु एक साथ विराजमान हैं। 

3. लिंगराज मंदिर कलिंग शैली और ओडिशा शैली में बलुआ पत्थरों से बना एक ऐतिहासिक मंदिर है। 

4. आप जानते हो की मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है।

5. आप मंदिर के पुजारी को छोड़कर पूजा की सेवा प्रदान करने वाले से दूर रहें।

6. आप मंदिर के अंदर मोबाईल फोन, कैमरा, पर्स, चमड़े का कोई भी सामान, प्लास्टिक बैग, जूते -चप्पल और अन्य प्रकार का कोई भी बैग नहीं ले जा सकते।

7. आप मंदिर में फोटोग्राफी भी नहीं कर सकते हो।

लिंगराज मंदिर

कैसे पहुंचें:-

रेल मार्ग:- भुबनेश्वर रेलमार्ग के माध्यम से सारे भारत से जुड़ा हुआ है आप भारत में किसी भी बड़े रेलवे स्टेशन से भुबनेश्वर के लिए सीधे ट्रैन ले सकते हैं। 

हवाई मार्ग:- अगर आप हवाई मार्ग से भुबनेश्वर आने कि सोच रहे हैं तो भुबनेश्वर में ही अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है और भुबनेश्वर के लिए देश के सभी महानगरों से भुबनेश्वर के लिए रेगुलर फ्लाइट हैं।  

सड़क मार्ग:- अगर आप सड़क मार्ग के द्वारा आने की सोच रहे हैं तो आपको बता दूँ की अगर आप भुबनेश्वर या ओडिशा के पडोसी राजय के रहने वाले हैं तो आप बस या टैक्सी से आ सकते हैं। लेकिन अगर आप दिल्ली से या  दिल्ली के आस पास से आ रहे हैं तो आपको कोई डायरेक्ट भुबनेश्वर के लिए बस नहीं मिलेगी इसलिए में बाई रोड आने की सलाह नहीं दूंगा।  

लिंगराज मंदिर भुबनेश्वर के ओल्ड टाउन में है और लिंगराज मंदिर के लिए आपको भुबनेश्वर शहर में किसी भी जगह से बस और टैक्सी आसानी से मिल जाएगी।   

2. खण्डागिरि और उदयगिरि की गुफाएं 

खण्डागिरि और उदयगिरि की गुफाएं भुबनेश्वर शहर में स्थित दो पहाड़ियों के अंदर बनीं हैं जो आपस में करीब 200 मीटर एक दूसरे से दूर हैं। जहाँ उदयगिरि पहाड़ी की ऊंचाई 135 फ़ीट है वहीँ खंडगिरि पहाड़ी की ऊंचाई 118 फ़ीट है

उदयगिरि और खंडागिरि की गुफाओं का इतिहास

उदयगिरि में 18 गुफाएं हैं और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं। कुछ इसमें प्राकृतिक गुफाएं हैं और कुछ गुफाओं को जैन साधुओं ने (209 से 170 ई पू ) बनाया था। इसका प्रमाण गुफाओं में मौजूद नक्काशी और जैन धर्म की मूर्तियों से मिल जाता है।

बताया जाता है की बाद में सम्राट अशोक ने राजा खारवेल को हरा कर कलिंग को अपने कब्जे में ले लिया उस समय बंगाल ,ओडिशा ,बिहार ,छतीशगढ और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से कलिंग का ही अंग थे। और उसके बाद उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाओं में बौद्ध साधुओं का ध्यान करने और रहने का स्थान बन गया। 

खण्डागिरि और उदयगिरि की खास बातें:-

1. उदयगिरि और खंडगिरि की  गुफाओं में कुछ गुफाओं को तो जैन साधुओं ने बनाया था पर कुछ गुफा प्राकृतिक रूप से बानी हुई हैं। 

2. उदयगिरि और खंडगिरि की इन गुफाओं में जैन धर्म की वास्तुकला देखने को मिल जाएगी। 

3. ये गुफाएं अजंता और एलोरा की गुफाओं जितनी प्रसिद्ध तो नहीं हैं परन्तु ये सुंदरता में उनसे कम भी नहीं हैं। 

https://youtu.be/6U1XbUJEBZw

कैसे पहुंचें :-

रेल मार्ग:- भुबनेश्वर रेलमार्ग के माध्यम से सारे भारत से जुड़ा हुआ है आप भारत में किसी भी बड़े रेलवे स्टेशन से भुबनेश्वर के लिए सीधे ट्रैन ले सकते हैं। 

हवाई मार्ग:- अगर आप हवाई मार्ग से भुबनेश्वर आने कि सोच रहे हैं तो भुबनेश्वर में ही अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है और भुबनेश्वर के लिए देश के सभी महानगरों से भुबनेश्वर के लिए रेगुलर फ्लाइट हैं।  

सड़क मार्ग:- अगर आप सड़क मार्ग के द्वारा आने की सोच रहे हैं तो आपको बता दूँ की अगर आप भुबनेश्वर या ओडिशा के पडोसी राजय के रहने वाले हैं तो आप बस या टैक्सी से आ सकते हैं। लेकिन अगर आप दिल्ली से ये दिल्ली के आस पास से आ रहे हैं तो आपको कोई डायरेक्ट भुबनेश्वर के लिए बस नहीं मिलेगी इसलिए में बाई रोड आने की सलाह नहीं दूंगा। उदयगिरि और खंडगिरि के लिए आपको भुबनेश्वर शहर में हर जगह से सिटी बस और टैक्सी मिल जाएगी। 

3. नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क (नंदनकानन वन)

परिचय

नंदनकानन वन ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर में स्थित है। नंदनकानन जिसका मतलाब है स्वर्ग का बगीचा और ये अपने नाम को चरितार्थ भी करता है। नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क जोकि एक बायोलॉजिकल पार्क भी है जो लगभग 1080 एकड़ में फैला हुआ है नंदनकानन वन को मुख्यतः बाघों के संरक्षण और प्रजनन के लिए जाना जाता है। 

नंदनकानन वन का इतिहास

नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क की 1960 में नींव राखी गयी थी और 1979 में इसे जनता के लिए खोल दिया गया। नंदनकानन वन के अधिकारीयों ने 1960 में कुछ छोटे जानवरों को पकड़ कर और कुछ दुर्लभ पौधों को लेकर दिल्ली में चल रहे विश्व कृषि मेले में ओडिशा मंडप की तरफ से प्रदर्शनी में पेश करने का फैशला लिया गया। और वन विभाग के अधिकारीयों ने ऐसा ही किया भी।

परन्तु दिल्ली से वापस आने पर वित्त विभाग ने चिड़ियाघर बनाने में आने वाले खर्च के कारण आपत्ति जताई। इसके बाद इन जानवरों के रहने के लिए जगह और खाने के लिए भोजन की समस्या सामने खड़ी हो गयी। फिर अधिकारीयों ने खंडगिरि और उदयगिरि की गुफाओं के पास घटिया में जानवरों के लिए अस्थायी जगह का निर्माण किया और जैन समुदाय ने इनके भोजन का प्रबंध किया।

यहाँ पर जानवरों के रखरखाव में काफी समस्यायें थीं जिसमे पानी सबसे बड़ी थी फिर चिड़ियाघर बनाने पर मोहर लग गयी इसके लिए चांडक वन का एक हिस्सा चुना गया और यहाँ पर एक 134 एकड़ में फैली कांजिया नाम की झील भी थी ये भी एक कारण था जिससे इस जगह पर मुहर लग गयी। 

नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क क्यों मशहूर है:-

1. नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क 2009 में वर्ल्ड एसोसिएशन जूज एंड इक्वेरियम से जुड़ने वाला देश का पहला चिड़ियाघर बना था। 

2. नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क सफ़ेद बाघों का प्रजनन करने वाला दुनिया का पहला चिड़ियाघर है। 

3. नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क में मगरमच्छों का प्रजनन भी करवाया जाता है। 

4. नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क की तरफ से 2008 में अडॉप्ट ए एनिमल प्रोग्राम सुरु किया गया था।


अडॉप्ट ए एनिमल प्रोग्राम क्यों खास है:-

अडॉप्ट ए एनिमल प्रोग्राम के तहत जो कोई भी किसी जानवर को गोद लेता है या उसका खर्चा वहन करता है उसको एक प्रमाण पत्र दिया जाता है और आजीवन उसका एंट्री फीस माफ़ कर दिया जाता है।

जो भी जिस जानवर को गोद लेता है उसका नाम उस जानवर के बाड़े पर लिख दिया जाता है जिसे वो गोद लेता है। गोद लेने का प्रोग्राम तो बहुत से चिड़ियाघरों ने चलाया हुआ है लेकिन नंदनकानन आयकर अधिनियम  की धारा  80 जी के तहत कर में छूट पाने वाला पहला चिड़ियाघर था। 

कैसे पहुंचें:-

रेल मार्ग:- भुबनेश्वर रेलमार्ग के माध्यम से सारे भारत से जुड़ा हुआ है आप भारत में किसी भी बड़े रेलवे स्टेशन से भुबनेश्वर के लिए सीधे ट्रैन ले सकते हैं। 

हवाई मार्ग:- अगर आप हवाई मार्ग से भुबनेश्वर आने कि सोच रहे हैं तो भुबनेश्वर में ही अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है और भुबनेश्वर के लिए देश के सभी महानगरों से भुबनेश्वर के लिए रेगुलर फ्लाइट हैं।  

सड़क मार्ग:- अगर आप सड़क मार्ग के द्वारा आने की सोच रहे हैं तो आपको बता दूँ की अगर आप भुबनेश्वर या ओडिशा के पडोसी राजय के रहने वाले हैं तो आप बस या टैक्सी से आ सकते हैं। लेकिन अगर आप दिल्ली से ये दिल्ली के आस पास से आ रहे हैं तो आपको कोई डायरेक्ट भुबनेश्वर के लिए बस नहीं मिलेगी इसलिए में बाई रोड आने की सलाह नहीं दूंगा। नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क के लिए आपको भुबनेश्वर शहर में हर जगह से सिटी बस और टैक्सी मिल जाएगी। 

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4. धौलीगिरि शिलालेख और शांति स्तूप 

परिचय

धौलीगिरि शिलालेख और शांतिस्तूप ओडिशा की राजधानी भुबनेश्वर से 7 -8 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ पर आप सम्राट अशोक द्वारा लिखे गये शिलालेख देख सकते हो और वहां से कुछ ही दूरी पर एक सफ़ेद रंग का शांति स्तूप है जो इंडो जापानीज शैली में बना एक खूबसूरत पैगोडा नुमा ईमारत है जिसे जापान बुद्ध संघा और कलिंग निप्पॉन बुद्ध संघ ने 1970 में मिलकर बनाया था।  

 

धौलीगिरि का इतिहास

धौलीगिरि एक ऐसी जगह है या फिर ये कहें की एक ऐसा गवाह है जिसने एक बहुत बड़ा नरसंहार देखा है, जिसने एक पत्थर को पिघलते हुए देखा है। हां धौली वही जगह है जहाँ 261 ई पू  महान सम्राट अशोक और कलिंग के राजा पद्मनाभन के बीच लड़ा गया था और जिसे हम सब कलिंग युद्ध के नाम से जानते हैं।

ये युद्ध क्यों हुआ था इसके पीछे भी एक कारण था और वो ये था की जब महान सम्राट अशोक के दादा चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कलिंग पर आक्रमण किया था तो वो सफल नहीं हुआ था। इसका मतलब वो युद्ध हार गया था बस इसी का बदला लेने के लिए ही सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था।

सम्राट अशोक के अंदर उस वक़्त इतना गुस्सा था या फिर ये कहें की उसके अंदर बदले की भावना इतनी प्रबल थी की जो भी उसके सामने आया अशोक ने उसका सर्वनाश कर दिया। ये युद्ध कितना भयानक था इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की इस युद्ध में 150000 लोगों ने अपनी जान गँवाई थी। और धौली में जो नदी है उसका नाम दया नदी है कहते हैं की इतने बड़े कत्लेआम की वजह से दयानदी का पानी लाल हो गया था।

कहते हैं की सम्राट अशोक ने अपने बदले की भावना से कत्लेआम तो कर दिया परन्तु जब युद्ध समाप्त हुआ तो हर तरफ लाशें ही लाशें और दया नदी का पानी रक्त से लाल देखकर उसका मन विचलित हो गया और सम्राट अशोक ने उसी समय अपने हथियार हमेशा के लिए छोड़ दिए और बौद्ध धर्म को अपना लिया। 

धौलगिरि में आपको सम्राट अशोक द्वारा लिखे गए कलिंग शैली के दो अलग अलग शिलालेख हैं जिनमे सम्राट अशोक की पूरी दुनिया के कल्याण के लिए चिंता स्पस्ट नज़र आती है। इन शिलालेखों के ऊपर एक हाथी की मूर्ति है जिसे पत्थर को काटकर बनाया गया है और ये मूर्ति ओडिशा में स्थित सबसे पुराणी बौद्ध मूर्तियों में से एक है। 

धौलगिरि की खास बातें:-

1. धौली वही जगह है जहाँ कलिंग युद्ध लड़ा गया था इसलिए इसे कलिंग युद्धक्षेत्र कहा जाता है। 

2. धौलीगिरी में आप सम्राट अशोक द्वारा लिखे दो अलग-अलग शिलालेख देख सकते हैं। 

3. सम्राट अशोक द्वारा लिखे शिलालेखों के ऊपर एक हाथी की प्रतिमा बानी है जो ओडिशा की सबसे पुराणी बौद्ध मूर्तियों में से एक है। 

4. धौली में बना शांति स्तूप इंडो जापानीज वास्तुकला का अद्भुद उदहारण है। 

5. धौली को बौद्ध धर्म में विशेष स्थान के रूप में देखा जाता है और इसे ओडिशा में बौद्ध धर्म का केंद्र मन गया है।  


कैसे पहुंचें :-

रेल मार्ग:- भुबनेश्वर रेलमार्ग के माध्यम से सारे भारत से जुड़ा हुआ है आप भारत में किसी भी बड़े रेलवे स्टेशन से भुबनेश्वर के लिए सीधे ट्रैन ले सकते हैं। 

हवाई मार्ग:- अगर आप हवाई मार्ग से भुबनेश्वर आने कि सोच रहे हैं तो भुबनेश्वर में ही अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है और भुबनेश्वर के लिए देश के सभी महानगरों से भुबनेश्वर के लिए रेगुलर फ्लाइट हैं।  

सड़क मार्ग:- अगर आप सड़क मार्ग के द्वारा आने की सोच रहे हैं तो आपको बता दूँ की अगर आप भुबनेश्वर या ओडिशा के पडोसी राजय के रहने वाले हैं तो आप बस या टैक्सी से आ सकते हैं। लेकिन अगर आप दिल्ली से ये दिल्ली के आस पास से आ रहे हैं तो आपको कोई डायरेक्ट भुबनेश्वर के लिए बस नहीं मिलेगी इसलिए में  बाई रोड आने की सलाह नहीं दूंगा।  

धौली के लिए आप भुबनेश्वर से पुरी जाने वाली कोई भी बस में बैठ कर वहां पहुँच सकते हैं। या फिर आप भुबनेश्वर में कहीं से भी टैक्सी ले सकते हो जो आसानी से अवेलेबल हो जाती हैं। 

5. भगवान जगन्नाथ मंदिर पुरी

अब हम आपको ले चलते हैं भुबनेश्वर शहर से 70 किलोमीटर दूर एक ऐसा भव्य रहस्मयी मंदिर है जिसे सारी दुनिया बहुत ही अच्छी तरह से जानती है। और आप लोगों ने भी कभी न कभी इस रहस्मयी मंदिर और इसके रहस्यों के बारे में जरूर सुना होगा जी हाँ हम बात कर रहे हैं भगवान जगन्नाथ मंदिर के बारे में।



आप लोगों ने चार धाम के बारे में तो जरूर सुना होगा उन चार धामों में से एक धाम भगवान जगन्नाथ मंदिर भी है।कहा जाता है की जब भगवान् विष्णु जब अपनी चार धाम की यात्रा पर निकलते हैं तो वो स्नान उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ में करते हैं वस्त्र धारण करते हैं गुजरात में स्थित द्वारिका में ओडिशा के पूरी में भोजन करते हैं और दक्षिण भारत के तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम में आराम या कहें की विश्राम करते हैं। 

भगवान् जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

बताया जाता है की इस मंदिर को 7 वीं सदी में बनाया गया था लेकिन इस मंदिर के 2 ईसा पूर्व बनने के सबूत भी मिले हैं। आपको बता दूँ की इस मंदिर को दुश्मनों ने 3 बार तोड़ दिया था आप जब भी पुरी जाओगे तो आप जिस मंदिर को देखोगे उसका निर्माण 1174 ईस्वी में ओडिशा के तत्कालीन राजा अनंग भीमदेव जी ने करवाया था।

आप देखोगे की मंदिर के चरों तरफ तीस अन्य प्रकार के देवी देवताओं के छोटे - छोटे मंदिर बने हुए हैं जो मंदिर की सुंदरता को और भी बढ़ा देते हैं। 

भगवन जगन्नाथ मंदिर के रहस्य या खास बातें:-  

1. जगन्नाथ पूरी के इस मंदिर की ऊंचाई 214 फ़ीट है जो कलिंग और ओड़िआ शैली का शानदार नमूना है जिस पर शानदार नक्काशी की गयी है। 

2. जगन्नाथ पूरी के इस मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र लगा हुआ है लेकिन जब आप उसे किसी भी दिशा से देखोगे तो आपको ऐसा लगेगा की ये आपके ठीक सामने है। जब में आखरी बार पूरी गया था तो मैंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था तो इसलिए में इस बात को 100 प्रतिशत नहीं मान सकता।

वैसे कुछ दिनों बाद में फिर से आपके लिए जाऊंगा और इस बात को ध्यान रखूँगा की इसमें कितनी सच्चाई है और ब्लॉग अपडेट करूँगा में कुछ पिक्चर लाऊंगा या फिर वीडियो भी ला सकता हूँ आप अपडेट का ध्यान रखना।
 

3. कहते हैं की जगन्नाथ पूरी के इस मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हवा के विपरीत लहराता है। परन्तु में ये नहीं मानता क्यूंकि ये मैंने देखा है और में एक पिक्चर या वीडियो डाल दूंगा जिसमे अन्य ध्वज भी मंदिर के ध्वज की दिशा में ही लहरा रहे हैं।  

4. कहते हैं की सामान्यतः दिन में हवा समुद्र से जमीन की तरफ चलती है और शाम के समय में हवा ज़मीन से समुद्र की तरफ चलती है लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है मुझे खुद जाकर देखना पड़ेगा। दोस्तों कमेंट करना मत भूलना अगर आपने भी जगन्नाथ पुरी के बारे में कुछ सुना है तो मुझे कमेंट जरूर करें में उसको सॉल्व करने की कोशिश करूँगा। 

5. कहते हैं की मंदिर के ऊपर जो गुम्बद बना है उसकी परछाई कभी बनती ही नहीं है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है इसे भी में खुद देख कर आपको कन्फर्म करूँगा। लेकिन में आपको इसका प्रूफ शायद नहीं दे पाऊं क्यूंकि मंदिर के अंदर कैमरा और फोन को नहीं ले जा सकते।

6. कहते हैं की मंदिर के अंदर जो प्रसाद बनता है वो कभी कम नहीं पड़ता चाहे कितने भी श्रद्धालु आ जाएँ। परन्तु यहाँ मुझे थोड़ा शक होता है क्यूंकि मैंने भी ये प्रसाद खाया है जहाँ ये प्रसाद मिलता है उसे आप एक कैंटीन भी बोल सकते हो यहाँ पर 4 से 5 तरह के चावल और 4 से 5 तरह की सब्जी मिलती है।

अब ये आपकी चॉइस है की आप क्या लेना चाहते हो और उसी के हिसाब से पैसे लगते हैं आप मोल भाव भी कर सकते हैं। इसलिए में कह रहा था की इसे प्रसाद नहीं कह सकते क्यूंकि किसी मंदिर के अंदर प्रसाद खाने के लिए खरीदना नहीं पड़ता। अब फाइनल बात करते हैं जब प्रसाद पैसों से मिलता है तो वो काम कैसे पद सकता है ये तो बिज़नेस हो गया ना।


7. कहा जाता है की मंदिर का प्रसाद बनाने के लिए क्रमशः सात बर्तन एक के ऊपर एक करके क्रम में रखे जाते हैं और निचे से आग लगती है। यहाँ पर ये होता है की सबसे पहले ऊपर वाला पकता है फिर उसके निचे वाला फिर उसके निचे वाला पकता है ऐसे ही क्रम में प्रसाद पकता है। अब ये होता कैसे है ये सोचने वाली बात है मेरे हिसाब से तो इसमें हीट ट्रांसफर का लॉ काम करता है।

परन्तु क्या हीट ट्रांसफर होते होते इतने ऊपर तक जा सकती है की छह बर्तनों को क्रॉस करके हीट ऊपर सातवें बर्तन तक पहुँच जाये। और पहुँच भी जाये तो क्या निचे वाले बर्तन का खाना जल नहीं जायेगा। अब ये साइंस है या चमत्कार मेरे मन में तो ये सवाल है? क्या आपके मन में भी ये सवाल है कमेंट करके जरूर बताना दोस्तों। अब में जब पुरी जाऊंगा तो इस सवाल का उत्तर ढूंढने की कोसिस करूँगा। 

8. आपको बता दूँ की जगन्नाथ पुरी मंदिर के चार द्वार हैं इनमे से एक द्वार है सिंह द्वार। कहते हैं की जब आप सिंह द्वार के अंदर एक भी कदम रखते हो तो आपको समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई नहीं देगी लेकिन जब आप एक भी कदम इसके बहार रखते हो तो आपको समुद्र की लहरों की आवाज फिर से सुनाई देने लगती है और ये तब होता है जब वातावरण शांत हो किसी प्रकार का कोई शोर न हो। मुझे भी ये जानना है की क्या ये सही है में कोशिस करुंगा की में आपके सामने इस बात की सच्चाई पहुंचा सकूँ। 

9. ये तो सच है की भगवन जगन्नाथ मंदिर का रसोई दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है इसमें तो कोई शक ही नहीं है। 

10. भगवन जगन्नाथ मंदिर चार लाख वर्ग फ़ीट में बना हुआ है। 

11. एक ये भी कहावत है की भगवन जगन्नाथ मंदिर के ध्वज को प्रतिदिन शाम को बदलने के लिए इंसान उल्टा चढ़ता है। अब इसमें कितनी सच्चाई है ये तो वहां जाकर ही पता चलेगा। 

12. एक कहावत ये भी है की भगवन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई भी पक्षी और कोई भी विमान नहीं गुजरता है। अब पक्षी मंदिर के ऊपर उड़ते हैं की नहीं ये तो वहां जाने के बाद ही पता चलेगा। परन्तु मंदिर बहुत पुराण है और सभी की आस्था मंदिर से जुडी हुई है हवाई जहाज की वाइब्रेशन से मंदिर को नुक्सान हो सकता है।

और मंदिर में ज्यादातर भीड़ ही रहती है भगवन न करे की कभी किसी हवाई जहाज के साथ कोई हादसा हो गया तो मंदिर के साथ साथ जानमाल का भी बहुत ज्यादा नुक्सान हो इसलिए इसे नो फ्लाई जोन घोसित किया हुआ है। 

13. जब भगवन जगन्नाथ का महाप्रसाद बनता है तो 500 रसोइये और 300 उनके हेल्पर साथ में काम करते हैं। और मंदिर में हमेशा मिटटी के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता है। 

कैसे पहुंचें:-


रेल मार्ग:- पुरी रेलमार्ग के माध्यम से सारे भारत से जुड़ा हुआ है आप भारत में किसी भी बड़े रेलवे स्टेशन से भी पुरी के लिए सीधे ट्रैन ले सकते हैं। 
हवाई मार्ग:- अगर आप हवाई जहाज से पुरी आने कि सोच रहे हैं तो पुरी का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा भुबनेश्वर है और भुबनेश्वर से आप बस या टैक्सी के द्वारा पुरी आसानी से पहुँच सकते हो। 
सड़क मार्ग:- अगर आप सड़क मार्ग के द्वारा आने की सोच रहे हैं तो आपको बता दूँ की अगर आप भुबनेश्वर या ओडिशा के पडोसी राजय के रहने वाले हैं तो आप बस या टैक्सी से आ सकते हैं। लेकिन अगर आप दिल्ली से ये दिल्ली के आस पास से आ रहे हैं तो आपको कोई डायरेक्ट बस नहीं मिलेगी इसलिए में बाई रोड आने की सलाह नहीं दूंगा।  

6. सूर्य मंदिर कोणार्क 

पुरी से 35 km दूर समुद्र के किनारे बसे कोणार्क में एक मंदिर है जो सूर्य मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है में जानता हूँ की आपने भी कभी न कभी इस मंदिर के बारे में जरूर पढ़ा या सुना होगा। इस मंदिर को गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंहदेव ने लगभग 1250 ईस्वी में बनवाया था। और सन 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोसित किया था।

धार्मिक महत्त्व 

यह मंदिर सूर्य भगवन को समर्पित किया गया है सूर्य भगवान को यहाँ के लोग बिरंचि नारायण भी कहते हैं और इसी वजह से इस क्षेत्र को अर्क क्षेत्र या पद्म क्षेत्र कहा जाता है कंफ्यूज मत होना अर्क सूर्य भगवान को बोलते हैं। पुरानों में बताया गया है की जब भगवन कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक ऋषि के श्राप के कारण कोढ़ रोग हो गया था तो उन्होंने कोणार्क में ही चंद्रभागा नदी के किनारे पर सूर्यभगवान की तपस्या की थी जिससे उनके रोग ठीक हुए थे।

तब साम्ब ने भगवन सूर्य का मंदिर बनवाने का निश्चय किया था। जब साम्ब चंद्रभागा नदी में नाहा रहे थे तब उनको नदी में भगवान सूर्य की एक मूर्ति मिली थी। इस मूर्ति को विश्वकर्मा जी ने भगवान सूर्यदेव के ही शरीर के एक भाग से बनायी थी। तब साम्ब ने सूर्यदेव की मूर्ति को अपने मित्रवन के मंदिर में स्थापित किया तभी से ये जगह पवित्र और आस्था का केंद्र माना जाने लगा।  

सूर्य मंदिर की खास बातें:-

1. जब आप इस मंदिर को देखेंगे तो आप पाओगे की यह सूर्य भगवन के विशाल रथ के जैसा बना हुआ है। जिसमे सबसे आगे सात घोड़े बने हुए हैं जो अभी आपको पूर्ण रूप में तो देखने को नहीं मिलेंगे लेकिन इनके अवशेष जरूर बचे हुए हैं जो आपको यहाँ मिल जायेंगे। 


2. कहा जाता है की इस मंदिर के ऊपर एक विशाल 52 टन का चुंबकीय पत्थर लगा हुआ था जो समुद्र में गुजरने वाले जहाजों को अपनी तरफ खींच लेता था। जब मुगलों का शासन हुआ था तो वो इस पत्थर को अपने साथ ले गए। पत्थर के निकल जाने की वजह से मंदिर की दीवारों का संतुलन ख़राब हो गया और ये मंदिर टूटने लगा। 

3. ये मंदिर अपनी विवादित नग्न कलाकृतियों के कारण भी बहुत चर्चा में रहता है। 

4. ऐसा नहीं है की इस मंदिर की कलाकृतियां बस अश्लील हैं असल में ये कलाकृतियां आदमी और औरत के जीवन काल के हर एक दिन को दर्शाती हैं। 

5. इस रथ नुमा मंदिर पहियों और सूर्य की धुप के मेल से आप समय का पता भी लगा सकते हो और ये हकीकत में होता है। 

कैसे पहुंचें:-

कोणार्क पहुँचने के लिए आपको भुबनेश्वर या पुरी से आसानी से बस या टैक्सी मिल जाएगी।

7. चंद्रभागा बीच कोणार्क 

चंद्रभागा का नाम आपने ऊपर भी पढ़ा होगा है कथाओं के अनुसार जिस जगह पर चंद्रभागा नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती थी उस जगह को आज चंद्रभागा बीच कहते हैं। और हाँ जो हिमाचल के स्पीति वैली में चंद्र और भागा नदी के मिलने से चंद्रभागा नदी बनती है उसका इस चंद्रभागा नदी का कोई लेना देना नहीं है।

  

वैसे अभी चंद्रभागा नदी अस्तित्व में नहीं है ये हमारे इतिहास के पन्नों और कथाओं में दर्ज है। लेकिन इसके अस्तित्व को नाकारा नहीं जा सकता इसके पीछे का कारण है रिसर्च। और ये रीसर्च इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी खड़कपुर के प्रोफसरों की एक टीम ने इस जगह पर किया था। और इसकी अध्यक्षता प्रोफसर विलियम कुमार मोहंती ने की थी। जिसमे सेटेलाइट की स्कैनिंग और गूगल स्कैन की मदद ली गयी थी। और इस स्कैनिंग में भी नदी होने के सबूत मिले हैं। 

खास बातें:-

1. जैसा की मैंने ऊपर बताया था की जब भगवन कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक ऋषि के श्राप के कारण कोढ़ रोग हो गया था तो उन्होंने कोणार्क में ही चंद्रभागा नदी के किनारे पर सूर्यभगवान की तपस्या की थी जिससे उनके रोग ठीक हुए थे।

2. आज भी पूर्णिमा को चंद्रभागा बीच पर स्नान करने श्रद्धलुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मान्यता ये है की यहाँ पर स्नान करने से शरीर के सारे रोग दूर हो जाते हैं। 

3. स्थानीय लोगों की मानें तो एक कथा ये भी है की एक ऋषि की बेटी का नाम चंद्रभागा था वो बहुत खूबसूरत थी। वो इतनी खूबसूरत थी की सूर्यदेव भी अपनेआप को रोक नहीं पाए। और सूर्यदेव चंद्रभागा का हाथ मांगने नीचे आये तो चंद्रभागा ने मन कर दिया परन्तु सूर्यदेव ने चंद्रभागा का पीछा किया। और अपनी इज्जत बचने के लिए चंद्रभागा ने नदी में कूदकर अपनी जान दे दी थी। उसी की याद में माघ माह की पूर्णिमा के सातवें दिन श्रद्धालु यहाँ पर पवित्र डुबकी लगाने के लिए आते हैं। 

4. चंद्रभागा तट को पर्यावरण शिक्षा फाउंडेशन द्वारा ब्लू फ्लैग बीच के प्रमाण से सम्मानित किया गया है जो साफ़ सुथरे, पर्यावरण के अनुकूल और प्रदुषण मुक्त समुद्री तटों को दिया जाता है। और आपको जानकार ख़ुशी होगी की ये तट भारत देश के साफ़ सुथरे तटों में से एक है।

भारत के सबसे साफ़ सुथरे बीचों में से एक चंद्रभागा बीच

कैसे पहुंचें:-

पुरी से चंद्रभागा बीच करीब 35 km है और अगर आप पुरी से चंद्रभागा बीच जाना चाहते हैं तो आप कोणार्क सूर्यमंदिर जाने वाली किसी भी बस में बैठ सकते हो। सूर्य मंदिर से 3 km पहले चंद्रभागा बीच आता है। नहीं तो आप टैक्सी करके भी जा सकते हैं। 

भुबनेश्वर से चंद्रभागा बीच करीब 45 km है और अगर आप भुबनेश्वर से चंद्रभागा बीच जाना चाहते हो तो आपको भुबनेश्वर से कोनक तक आसानी से बस मिल जाएगी। कोणार्क से चंद्रभागा बीच 3 km है या तो आप कोणार्क से पुरी जाने वाली बस में बैठ सकते हो या फिर आप ऑटो से भी जा सकते हो। अगर आप चाहें तो आप भुबनेश्वर से टैक्सी भी ले सकते हो।  

एक्सपर्ट की सलाह:-

अगर आप मेरी सलाह मानें तो अगर आप भुबनेश्वर में हो तो आप एक टैक्सी जीजिए और एक दिन भुबनेश्वर को दीजिये जिसमे आप लिंगराज मंदिर, नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क, धौलगिरि और उदयगिरि और खंडगिरि घूम सकते हो।

अगले दिन आप भुबनेश्वर से पुरी जाइये और एक दिन पुरी को दीजिये जिसमे भगवन जगन्नाथ मंदिर, पुरी बीच और आस पास के अन्य मंदिर हैं वहां घूम सकते हैं। और एक दिन आप भुबनेश्वर में लोकल एक्टिविटी के लिए ले सकते हैं। जिसमे छोटे छोटे पर बहुत पुराने मंदिर हैं और स्टेट म्यूजियम है जिसमे आप ओडिशा राज्य के इतिहास से जुडी जानकारी ले सकते हैं। 

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